हौसला बुलंद है

                        हौसला बुलंद है 

खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल ,
गर हौसला बुलंद है,
खुलेंगे दरवाज़े किस्मत के ,
जो अब तलक बंद है ,

तेज़ कर आग तू ये ललक की ,
जो पडी चली अब मंद है ,
खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल .........

अभी तू सह दर्द ये सफर का ,
मंज़िल आ जाएँ फिर आनद ही आनंद है ,

मत घबरा अभी "रत्न " तू हार  से ,
देखना खुद ब-खुद हट जाएगी ,
जीत पर पड़ी जो धुंध है ,
खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल ,
गर हौसला बुलंद है ,....................................

गुप्त रत्न 

टिप्पणियाँ