हर बार यूँ ही खामोश बिखरे से चले आते है , लवो पर लेकर अधूरी सी बात चले आते है । जाते तो है ख़तम करने सिलसिला ये मुलाकातों का , वायदा ,मगर साथ अगली मुलाकात ,का लिए आते है ॥ हाथ मैं शराब लेकर भी करते है होश की बातें हम, उनके पास से क्यों ?बिन पिए बहके से चले आते है । आतें है उनके पास से, हम कुछ यूँ तिशनगी लेकर , जैसे सागर के पास से भी प्यासे चले आते है ॥ सौ सवाल दुनिया वालों के और खामोश है हम, जाते है जवाब लेने,और एक सवाल लिए आते है । इस पर भी नहीं,उस पर भी नहीं पहुंचे , कश्ती को यूँ मझधार पर छोड़कर चले आते है ॥ यूँ तो खुद नहीं जानती अपनी चाहत ए "रत्न " वहां से और, उलझे ख्यालात लिए चले आते है । धोखा करते है अपनों से ,मिलने के लिए उनसे , और खुदसे से फरेब करके चले आते है ॥ देंगे किनारा मेरी कश्ती को जो खुद डुब रहे है , झूठ है हम ,इस हक़ीक़त को लिए चले आते है है लवो पर लेकर अधूरी सी बात चले आते है , हर बार यूँ ही खामोश से चले आते है ॥ "गुप्त रत्न "