हर बार यूँ ही खामोश बिखरे से चले आते है , लवो पर लेकर अधूरी सी बात चले आते है । जाते तो है ख़तम करने सिलसिला ये मुलाकातों का , वायदा ,मगर साथ अगली मुलाकात ,का लिए आते है ॥ हाथ मैं शराब लेकर भी करते है होश की बातें हम, उनके पास से क्यों ?बिन पिए बहके से चले आते है । आतें है उनके पास से, हम कुछ यूँ तिशनगी लेकर , जैसे सागर के पास से भी प्यासे चले आते है ॥ सौ सवाल दुनिया वालों के और खामोश है हम, जाते है जवाब लेने,और एक सवाल लिए आते है । इस पर भी नहीं,उस पर भी नहीं पहुंचे , कश्ती को यूँ मझधार पर छोड़कर चले आते है ॥ यूँ तो खुद नहीं जानती अपनी चाहत ए "रत्न " वहां से और, उलझे ख्यालात लिए चले आते है । धोखा करते है अपनों से ,मिलने के लिए उनसे , और खुदसे से फरेब करके चले आते है ॥ देंगे किनारा मेरी कश्ती को जो खुद डुब रहे है , झूठ है हम ,इस हक़ीक़त को लिए चले आते है है लवो पर लेकर अधूरी सी बात चले आते है , हर बार यूँ ही खामोश से चले आते है ॥ "गुप्त रत्न "
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By Guptratn ek Ehsas
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देखा है मैं बच्चो को हँसते हुए खिलखिलाते हुए,गुनगुनाते हुए । किसी की किताब छीन लेना कभी , किसी की कॉपी को फाड् देना , फिर देखा उसे गलती पर मनाते हुए ॥ अपना टिफिन खाकर,दूसरे का छीनना कभी भूखे रहकर खुद दोस्तों को खिलाना , देखा है मैंने इनको मिल बांटकर खाते हुए ॥ शिकायते करना ,कभी मार देना फिर चिढाना देखा उसी दोस्त को टीचर की डांट से बचाते हुए झगड़ लेना कभी, फिर कंधे पर हाथ डालकर चलना देखा मैंने उनको एक दूसरे को रूठते- मनाते हुए ॥ फेल हो जाना, कभी परीक्षा न देना फिर पूछने पर झूठी कहानी सुनाते हुए , "मैंने तो कुछ नहीं किया " पकडे जाने पर कहना, देखा है,परीक्षा मैं बच्चो को पूछते और बताते हुए ॥ डांट खाना कभी फिर चुपके से हँसना देखा है मैंने बच्चॊ को शरारत करते हुए, टीचर को मनाते हुए तो कभी सताते हुए ॥ जाते है कुछ पुराने तो बनते है नए परिवार का हिस्सा । मैंने हर साल देखा बच्चॊ को स्कूल से आते हुए जाते हुए ॥ गुप्त रत्न
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"गुप्त रत्न " सोचती हूँ हर बार पहले कदम ये बढ़ाने से , साथ है मेरे, कह सकेंगे वो इस जमाने से , मिल जाएगी क्या मंज़िल,इन राहों पर , खो न जाऊं,सोचती हूँ पहले जाने से ,॥ सोचते है बन जाएँ रिश्ते वो पहले से , कांच जुड़ता है कही बाद टूट जाने के । नहीं बनता,शीशमहल पहले की मानिंद , सोचा नहीं ,यूँ जमीं पर पहले गिराने से ॥ खरा तुमको भी उतरना पड़ेगा इम्तिहान मैं , सोच लो इक बार ,पहले मुझे आजमाने से ,। हम तो फिर भी गुज़ार लेंगे ज़िन्दगी तनहा यूँ , क्या तुम लड़ सकोगे मेरी तरह ज़माने से .॥ कितनो को दुश्मन बना दिया मेरी चाहत ने , अब रोकेंगे कैसे दोस्तों को दुश्मनी निभाने से ,। तेरी निगाहों मैं लिखा है हाल-ए-दिल तेरा होता क्या है ?ख़ामोश होकर यूँ नज़ारे चुराने से ॥ कहते है तोड़ देंगे ,हर रिश्ता ए "रत्न " देखेंगे,क्या है ?हक़ीक़त वक़्त आने पर । सोचती हूँ हर बार पहले कदम ये बढ़ाने से , साथ है मेरे, कह सकेंगे वो इस जमाने से ॥
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दिल को चैन न मिला किसी बहाने से , न पास उसके जाने से ,न दूर उसके जाने से i जानती थी ये मुश्किलें सिर्फ मेरी है , उनको नहीं मतलब मेरे दिल लगाने से I , मालूम था ,टूटेगा दिल-ए-आइना "रत्न" मिला क्या आखिर उनको आजमाने से , इंतज़ार -ए-दर्द फिर भी सह रहे थे हम ' जान गई , मेरी उनके एक बहाने से I और क्या करते कहा जाते ,हम इश्क़ मैं , आखिर मैं बात ये सीखी इस जमाने से I ज़िन्दगी तो वक़्त से चलती रहती है , फर्क क्या ,किसी के आने से या जाने से I वो भी तो कही न कही मज़बूर होगा , मिलेगा क्या उसे? मेरा दिल यूँ दुखाने से I कुछ नहीं हासिल यूँ तड़पने से ए "रत्न" फायदा होगा, शायद उसे भूल जाने से I गुप्त रत्न
"गुप्त रत्न" हिंदी कवितायें- हौसला
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हौसला खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल , गर हौसला बुलंद है, खुलेंगे दरवाज़े किस्मत के , जो अब तलक बंद है , तेज़ कर आग तू ये ललक की , जो पडी चली अब मंद है , खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल ......... अभी तू सह दर्द ये सफर का , मंज़िल आ जाएँ फिर आनद ही आनंद है , मत घबरा अभी "रत्न " तू हार से , देखना खुद ब-खुद हट जाएगी , जीत पर पड़ी जो धुंध है , खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल , गर हौसला बुलंद है-