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#guptratn:अलाव

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पहले घरो के आगंन में जलता अलाव था , साथ बैठता था परिवार ,उसमे एक लगाव था , भूनकर खाते थे मटर के दाने उसमे, नही मिला कही वो स्वाद ,उस खाने में एक चाव था , अब अलग अलग घर है ,घरों में कमरे भी अलग है , है सब अपने , है  साथ , फिर भी सब अलग है , रूम हीटर ने ले ली जगह अब कहाँ अलाव जलते है , किसने ,किसको कब क्या कहा ,  दिलों में बस ये घाव पलते है , अब कहाँ होती है ,वो सुबह,जहाँ चाय मिलकर सब पीते थे , काटते नही ,वक़्त को  लगता है मानो वो जीते थे , कहाँ होती है वो सुबह , अब तो ओ बस जिम्मेदारियों के तले  दिन ढलते है , किसने किसको कब क्या कहाँ ,दिलों में ये ही घाव पलते है ......., कसूर नही किसी का, कुछ जरूरतें बढ़ी और कुछ लालच भी , हो गए आधुनिक ,बन गया  शहर  जो पहले गावं था, वरना पहले घरों में जलता अलाव था ...............साथ बैठता था परिवार ...

#लिवास रखो तन पर ऐसा,

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#लिबास #गुप्तरत्न #guptratn "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " अजब था इश्क उसका , बधन भी था आज़ादी भी l तलब लगी कुछ ऐसी ,मुझको, लत भी नही, और रही आदी  भी l लिवास रखो तन पर ऐसा, मलमल दिखे गर पहनो खादी भी l ऐसा रूप दिया मालिक ने,  चमकती हूँ पर रहती सादी भी l उसकी यादों का सैलाब ऐसा, थामी नदी आँखों ने और बहा दी भी l अजब तूफ़ान उसकी जुदाई का, उजाड़ दी दुनिया और बसा दी भी l तेरी नज़र की तपिश है ऐसी, ठंडक भी,दिल मैं आग लगा दी भी ll ©

सुनने उस एक तराने की लिए ll

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"गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " https://m.starmakerstudios.com/d/playrecording?app=tvp&from_user_id=5348024334707325&is_convert=true&recordingId=5348024549343124&share_type=fb&fbclid=IwAR1vNJwZbXtabULaRYNW9CbIQDGQzvUPFSPEE_IyjkaxFGZHNhKZFhDn6_0 नही स्वरना किसी को दिखाने के लिए ये जिंदगी चुनी है खुद मैंने, नही जीना मुझे ज़माने के लिए ll मैं जो हूँ बस वहीँ हूँ, नही सवंरना मुझे किसी को दिखाने के लिएll इतनी आसानी से नही मिलेगी , बहुत सफ़र वाकिं है ,मंजिल को पाने को लिए ll बहुत जलना होगा,2* खुदको अभी कुंदन बनाने के लिए ll सीता की तरह पाकीज़गी साबित करें, नही जी,धरती नही फटेगी यहाँ खुद मैं हमें समाने के लिएll आदत ये जीत की  लगी क्या मुझको, लोग जाने क्या-क्या कर जायेंगे अब मुझे हराने के लिए ll क्यूँ बुला बैठी दुश्मन को दिल मैं,? दोस्त क्या कम थे?,मुझे सताने के लिए ll इक शाम की ही तो तलबगार हूँ मैं , सुनना है जो,तेरी आवाज़ मैं उस अफ़साने के लिएll हो जाएँ जिससे तरन्नुम-ए-फिजा , बैठी हूँ कब से,सुनने उस एक तराने की लिए ll बोलूं

आया है राजा नया,अभी हाल में

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" गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं " मची है हलचल मैदान में, आया है नया राजा, अभी हाल में , तुम राजा हो  जंगल  के , ध्यान रहे  , लोमड़ी भी घूमते है यहाँ ,हिरन की खाल में , शतरंज की बिसात है और रानी हो  आप , चलना संभल के , बाज़ी पलट सकती है ,यहाँ  एक गलत चाल में , दो मुहं सांप भी रहते है यहाँ , बस सुनना ,पर  फंस न जाना ,इनकी बातों के जाल में , अभी  न समझ सकोंगे तुम  ये शायरी , आने लगेंगे समझ, ये अलफ़ाज़ कुछ दिन ,महीने य साल में , अभी मचेगी उथल -पुथल  दिलों में , लिखा है किसके लिए , उलझ के रह जायेंगे सब इस सवाल में , आया है नया राजा ......अभी हाल में

#गुप्तरत्न : "गुप्तरत्न" महक रहे है, तेरी खुशबू से अब तलक ,

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गुप्तरत्न : "गुप्तरत्न" महक रहे है, तेरी खुशबू से अब तलक , :   तू ही बता खुद को समझाएं कैसे l ये तड़प दिल की,तुम्हे बताएं कैसे ll खेल रहे है, इस क़दर मेरे दिल से l तेरी तरह हम भी,तुझे सताएं कैसे ll ... "गुप्तरत्न " "भावनाओं के समंदर मैं "