"गुप्त रत्न " " भावनाओं का समंदर "


तेरी बरूखी ने एहसान कर दिया,
मेरा वक़्त  मेरे ही नाम कर दिया //

मत रख इस क़दर कफस मैं ,अब
दिल ने बगावत का एलान कर दिया //

तेरी ही शक्ल होती है ,रूबरू ,बस
ख्यालो का  नाम ग़ज़ल कर दिया //

गुनाहों का फैसला तो बांकी था अभी ,
क्यूँ साबित मुजरिम,मुझे सरेआम कर दिया //

दिए अल्फ़ाज़ इन ख्यालो को कैसे,मैंने
खोकर तुझमे,सुबह को शाम कर दिया //

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