"गुप्त रत्न""भावनायों के समन्दर मैं"


एक दिन कभी यूँ भी होगा ,
हम होंगे तुमे होंगे .
धीमी -२ चल रही होंगी हवाएँ,
और छाया बादलो ,का झुण्ड घना होगा ,
हम कह रहे होंगे दिल की बात बंद होठो से ,
तुम सुन रहे होंगे , खामोश सा समां होगा,
हमारी ये ख़वाहिशे की ये कहे ,वो कहे ,
भूल गई बोलने का ज़ज्बा खो गया होगा ,
फिर पकोडेगे वो हाथ हाथ कुछ उसी अंदाज़ से ,हमारा,
पहली मुलाकात का एहसास जिंदा हो गया होगा ,
ये तो ख्वाइशे है ,जो कभी नहीं मिटती
उस पर और इक ख्वाइश ये "रत्न "
ये अरमान ख्वाहिशो का कभी तेरा भी होगा।
गुप्त रत्न

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