बेमकसद सफ़र की न थकान दे //

"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "


मेरा सब्र  जवाब अब दे रहां है ,
गुज़ारिश है यूँ मेरी न जान ले //

नही आता हाल-ए-दिल बयां करना ,
ख़ामोशी का यूँ मेरी न इम्तिहान ले ,//

जो कह सकती थी नज़रो से कह दिया ,
बार-बार ,यूँ  मेरा न इक बयान ले //

नहीं चल सकते तो रुक जाते है,
बेमकसद सफ़र की न थकान दे //

बताऊँ क्या समन्दर की लहरों का हाल,
डूब रही हूँ,दिल मैं  तू और न तूफ़ान दे //

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