"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "



अपने ही ख्वाबों को टूटता देखा ,
वक़्त को हाथों से छूटता देखा ,
ज्यादा तो कुछ नही देख,इस कम उम्र मैं ,
पर पूछो न "रत्न"ने क्या -क्या देखा /////

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