"गुप्त रत्न" हिंदी कवितायें- हौसला
हौसला खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल , गर हौसला बुलंद है, खुलेंगे दरवाज़े किस्मत के , जो अब तलक बंद है , तेज़ कर आग तू ये ललक की , जो पडी चली अब मंद है , खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल ......... अभी तू सह दर्द ये सफर का , मंज़िल आ जाएँ फिर आनद ही आनंद है , मत घबरा अभी "रत्न " तू हार से , देखना खुद ब-खुद हट जाएगी , जीत पर पड़ी जो धुंध है , खुद तुझे पुकारेगी मंज़िल , गर हौसला बुलंद है-