"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "


सता ले,चाहे जितने लें इम्तिहान,
अब आप भी इक बात लें जान,//

हारना मुझको मंज़ूर नही,
चाहे जो भी हो अब अंजाम //

बनिया हूँ नहीं करती वो सौदे,
जहाँ मुमकिन हो नुकसान//

तड़प का इकरार भी किया,
निगाहों से भी दिया पैगाम //

ऐसी भी क्या मसरूफियत ? ,
दे न सको अपनी एक शाम //

मुबारक हो मजबूरियां आपको,
नही मुझे इनसे मतलब न काम //

सजदा करा लिया रत्न से,फिर भी अब 
रखते हो क्या खुदा बनने काअरमान //
Posted by Gupt Ratn at 10:02

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