"गुप्त रत्न " " ख़ामोशी की गहराई मैं  "


खो गए सारे रास्ते,तुम तक आने के लिए,
बचा भी नहीं कोई,अब मंज़िल का पता बताने के लिए ॥

भटक गई हूँ,राहों मैं ज़िंदगी की,
बची भी कहाँ मंज़िले,अब पाने के लिए ॥

गुमां न था आवारगी होगी इस क़दर ,
दिल तरसेगा एक अदद ठिकाने के लिए ॥

खो गए सारे .....................

पूछे जो कोई तन्हाई का सबब ,तो बताऊँ क्या?
दर्द-ए-दास्ताँ है,किस्सा नहीं ये लोगो का मन बहलाने के लिए ॥

मुहब्बत ही कीमत रही "रत्न" की ,
खरीदार नहीं मिलते,अक्सर महंगी कीमत चुकाने के लिए ॥

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