"गुप्त रत्न ": क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं ,छाया है कोहरा घन...
"गुप्त रत्न ": क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं ,
छाया है कोहरा घन...: क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं , छाया है कोहरा घना ,की कुछ नज़र आता नहीं , चले थे कहाँ ,और पहुंचे है कहाँ ,पर आकर हम, दुरी है बराबर ,लौ...
"गुप्त रत्न "" भावनाओं के समंदर मैं "
छाया है कोहरा घन...: क्या करे की अब कुछ समझ आता नहीं , छाया है कोहरा घना ,की कुछ नज़र आता नहीं , चले थे कहाँ ,और पहुंचे है कहाँ ,पर आकर हम, दुरी है बराबर ,लौ...
"गुप्त रत्न "" भावनाओं के समंदर मैं "
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें