लिखी हुयी इबारत हूँ ,चंद पढ़ डालिए जनाब //
मेरे बारे मैं इतने भी वहम न पालिए जनाब,
लिखी हुयी इबारत हूँ ,चंद पढ़ डालिए जनाब //
सूरत से न हो पायेगा, अनुमान-ए-हसरते ,
समझना है गर मुझे ,तो आँखों मैं आँखे डालिए जनाब //
मोम सी पिघली हूँ, आपकी निगाहें-ए-तपिश मैं ,
पत्थर थी बनी ,जब से धोखे बहुत खा लिए जनाब //
अकेली ,उलझी हुयी ख़ूबसूरत मैं पहेली हूँ,
सुलझ जाएगी न इक दिन सुलझाइए जनाब //
छिनना ही चाहते हो ,न चुराना ही "रत्न"को,
फिर कीमत अदा कीजिये या खुदा से मांग डालिए जनाब //
भटकी हुयी लहरे थी ,तूफ़ान-ए-समन्दर मैं,
घडी भर को सही,आपकी महफ़िल मैं जज़ीरे पा लिए जनाब //
जीत जाइये या हरा दीजिये हमको ,
बस थम जाइये ,अब इतना न हमसे खेलिए ,जनाब//
मचल जाती है लहरे,समन्दर मैं तेरे ख्यालो से,
थाम लो इन्हें,वरना आपको डुबोकर ही मानेगी जनाब//
सामने आये आप, घबराकर धडकने ही रुक गई,
कैसे समझाऊ खुदको ,आप ही समझाइये जनाब //
एक घडी भी आपका ख्याल जाता नही दिल से ,
क्या चाहते है ,अब फरमाइए /बहुत मुझे सता लिए जनाब //
लहरों मैं हलचल है ,बादल भी है सबब ,
तूफ़ान दोनों मैं है ,इल्ज़ाम बस मत समन्दर पर डालिए जनाब //
पहले ही कम थी क्या हलचल लहरों मैं,
और एक तूफ़ान बनकर आ गए समन्दर मैं जनाब //
ज़जीर-द्वीप,टापू-ज़मीन जो चारो और पानी से घिरी हो
लिखी हुयी इबारत हूँ ,चंद पढ़ डालिए जनाब //
सूरत से न हो पायेगा, अनुमान-ए-हसरते ,
समझना है गर मुझे ,तो आँखों मैं आँखे डालिए जनाब //
मोम सी पिघली हूँ, आपकी निगाहें-ए-तपिश मैं ,
पत्थर थी बनी ,जब से धोखे बहुत खा लिए जनाब //
अकेली ,उलझी हुयी ख़ूबसूरत मैं पहेली हूँ,
सुलझ जाएगी न इक दिन सुलझाइए जनाब //
छिनना ही चाहते हो ,न चुराना ही "रत्न"को,
फिर कीमत अदा कीजिये या खुदा से मांग डालिए जनाब //
भटकी हुयी लहरे थी ,तूफ़ान-ए-समन्दर मैं,
घडी भर को सही,आपकी महफ़िल मैं जज़ीरे पा लिए जनाब //
जीत जाइये या हरा दीजिये हमको ,
बस थम जाइये ,अब इतना न हमसे खेलिए ,जनाब//
मचल जाती है लहरे,समन्दर मैं तेरे ख्यालो से,
थाम लो इन्हें,वरना आपको डुबोकर ही मानेगी जनाब//
सामने आये आप, घबराकर धडकने ही रुक गई,
कैसे समझाऊ खुदको ,आप ही समझाइये जनाब //
एक घडी भी आपका ख्याल जाता नही दिल से ,
क्या चाहते है ,अब फरमाइए /बहुत मुझे सता लिए जनाब //
लहरों मैं हलचल है ,बादल भी है सबब ,
तूफ़ान दोनों मैं है ,इल्ज़ाम बस मत समन्दर पर डालिए जनाब //
पहले ही कम थी क्या हलचल लहरों मैं,
और एक तूफ़ान बनकर आ गए समन्दर मैं जनाब //
ज़जीर-द्वीप,टापू-ज़मीन जो चारो और पानी से घिरी हो
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