"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "

बिना किसी शर्त ,बिना किसी रस्मों और वादों के,
सीने से लगकर कहना चाहती हूँ,अपनी साँसों से //

कैसे बोलूं छुते हो मुझको,बिन छुए भी अपनी निगाहों से
करती हूँ महसूस आपको ,अब बेनाम इन एहसासों से //

रख दो हाथ सीने मैं ज़रा,धड़कन मचल रही है,
आराम मिले कुछ,तड़प गए हम बेकाबू ज़ज्बातो से //

नींदे भी बगावत करने लगी ,हमसे अब रातों मैं,
बनकर हकीक़त एक रात आ जाओ,मेरे ख्वाबों से//

सारी हया ,लिहाज़,छोड़ी अब,"रत्न"ने
मजबूर हुये,इस क़दर दिल के हालातो से //

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