"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "

बैचैनी दिखने लगी आँखों मैं मेरी,
मत इतना भी तरसाओ मुझको !!

बदलकर रोज़-रोज़ यूं शर्ते ,
मत इस क़दर आजमाओ मुझको !!

उलझी हुई है,जिंदगी मेरी ज़ुल्फो की तरह,
मत इन शर्तो की पहेली मैं और उलझाओं मुझको!!

शर्त थी बारिश मुलाक़ात की ,
मौसम भी कहने लगा,मत अब इंतज़ार करवाओ मुझको !!

मुमकिन है दिल को मंज़ूर हो सब,
बदली है गर,शर्ते तो बताओ तो मुझको!!

सामने बैठकर,पढ़ती हूँ निगाहों मैं आपकी ,
तड़प ये मेरी तरह, बताओ की न बताओ मुझको !!

मुश्किल है सहना रात-दिन की तड़प ये,
छोड़ कर कहती हूँ,लिहाज़ अब गले से लगाओ मुझको!!




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