"गुप्त रत्न "
" भावनाओं के समंदर मैं "
चाहती हूँ कुछ लिखना ऐसा जो सबका मन चीर दे ,
भर दे ह्रदय हौसले से पर आँखों मैं भी नीर दे //
हर युवक बना बैठा है रांझा ,कहता मुझको मेरी हीर दे,
नहीं मांगता खुलकर,कोई नहीं कहता मुझको मेरा कश्मीर दे //
श्रीराम लिखना है अपराध,नहीं कर सकते कालीमंदिर मैं घंटनाद,
फिर भी कहते प्रेम से हम सनातनी,ईद मैं सेवई की खीर दे //
कह रही चीख चीख कर भारत माता ,
मुझको फिर आज़ाद और भगत सिंह जैसे वीर दे //
बचा सके जो लाज मेरी भरी सभा मैं,
हे वीरो श्रीकृष्ण की तरह मुझे वो अंतहीन चीर दे //
न बैठे कोई नपुंसक जैसा,हर युवा बहे प्रेम मैं मेरे ,
सबके ह्रदय देशप्रेम मैं मचले,सबको वो ह्रदय अधीर दे //
चीर -फाड़ना ,भावना जगाना
चीर-कपड़ा,
अधीर -व्याकुल ,बेचैनी
सनातनी-हिन्दू धर्म अनुयायी
घंटनाद-घंटी की आवाज़
(कल्कुत्ता मैं काली मंदिर मैं घंटी बजाने और हैदराबाद मैं ऑटो मैं श्रीराम लिखने पर कटाक्ष )
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