दर्द पढ़ना लगता है अच्छा ,इसलिए दर्द लिख रहें है,
यकीन मानो पीकर सब सच लिख रहें है,
वो तो नशा था मेरे लिए अब तक,
है लत,वो लिख रहें है //
तन्हाई भी कितनी बेरहम होती है,भूलना है,
जिसको उसको लिख रहें है //
सबने नचाया है अपने इशारों पर मुझको,
अब और नहीं,बस वो लिख रहें है //
तुम्हारी तड़प तो जीत है मेरी ,तुम तड़प जाओ ,
इसलिए तो लिख रहें है //
तुम तो दवा हो ए दोस्त,
ज़हर न बन जाओ इसलिए लिख रहे है //
तुझसे हर ओहदे मैं ऊँचे रहें ,फिर भी,
हारे है मुह्ब्बत मैं,इसलिए लिख रहे हैं //
गुप्त रत्न 

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