"गुप्त रत्न "
"ख़ामोशी की गहराई मैं"
सामने बैठकर दिल का संभलना,
जैसे आग मैं रखकर हाथ का न जलना,
नही देखा अब तलक,
गर्मी मैं बर्फ का न पिघलना //
नही पता "रत्न"को,
रोके कैसे यूँ धडकनों का मचलना //
सिखा दो ये फनकारी,
छिपाकर तड़प, महफ़िल मैं संभलना //
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सामने बैठकर दिल का संभलना,
जैसे आग मैं रखकर हाथ का न जलना,
नही देखा अब तलक,
गर्मी मैं बर्फ का न पिघलना //
नही पता "रत्न"को,
रोके कैसे यूँ धडकनों का मचलना //
सिखा दो ये फनकारी,
छिपाकर तड़प, महफ़िल मैं संभलना //
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