"गुप्त रत्न " "ख़ामोशी की गहराई मैं"

सामने बैठकर दिल का संभलना,
जैसे आग  मैं रखकर हाथ का  न जलना,

नही देखा अब तलक,
गर्मी मैं बर्फ का न पिघलना //

नही पता "रत्न"को,
रोके कैसे यूँ धडकनों का मचलना //

सिखा दो ये फनकारी,
छिपाकर तड़प, महफ़िल मैं संभलना  //
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