"गुप्त रत्न " " भावनाओं के समंदर मैं "
अजीब सी कशमकश साथ मेरे,आजकल 
खुद से ही है,एक जंग आजकल //

सिहर उठती हूँ ,तेरा ख्याल आते ही,
ये क्या  हो रहा है, मेरे संग आजकल//

सोच कर घबराना ,कभी शर्माना तुझे,
अजब से हालत हो चले मेरे संग आजकल //

मैं तो नहीं थी कभी ऐसी,
क्यूँ बदले है,मेरे ढंग आजकल//

कितने जले है,अब तक ये क्या बताऊँ,
खुद मोम सी पिघल रही है ,ये आग आजकल//

जाने कितनो को तडपाया है,बताएं क्या इस "रत्न"ने,
एहसास ये नए करते है,इसको तंग आजकल //

मौसम ने भी क्या करवट ली है शानदार,
बारिश मैं है तिश्नगी ,समन्दर मैं आजकल //

बदल रहा है हवाओं का रुख,
लहरों मैं हलचल ,नयी तरंग है आजकल//

चाहकर नहीं छिपा पाते है "रत्न"
खोल रहे है राज़,आँखे और चेहरा का रंग आजकल//

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