"गुप्त रत्न " "

सिमट जाऊं ,तेरी बाहों मैं,
इस इम्तिहा तक तरसाना चाहते हो,//?

मोम सी पिघल रही हूँ ,
खुद भी आग हो ये बताना चाहते हो //?

 प्यास नही तुमको,?
सच कहो किसे बहलाना चाहते हो //?

दो कदम भी नही चले साथ,अभी,
घबराकर कदम पीछे हटाना चाहते हो//?

डरते हो, न मुहब्बत कर बैठो "रत्न"से  ,
दिल तो गया आपका अब क्या बचाना चाहते हो //?

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